हाइगेंस का सिद्धांत ---
जब हम किसी शांत जल के तालाब में एक छोटा पत्थर फेंकते हैं तब प्रतिघात बिंदु से चारों ओर तरंगें फैलती हैं। पृष्ठ का प्रत्येक बिंदु समय के साथ दोलन करना प्रारंभ कर देता है। किसी एक क्षण पर पृष्ठ का फ़ोटोग्राफ़ उन वृत्ताकार वलयों को दर्शाएगा जिनके ऊपर विक्षोभ अधिकतम हैं। स्पष्टत: इस प्रकार के वृत्त के सभी बिंदु समान कला में दोलन करते हैं क्योंकि वे स्रोत से समान दूरी पर हैं। समान कला में दोलन करते ऐसे सभी बिंदुओं का बिंदु पथ तरंगाग्र कहलाता है। अत: एक तरंगाग्र को एक समान कला के पृष्ठ के रूप में परिभाषित किया जाता है। जिस गति के साथ तरंगाग्र स्रोत से बाहर की ओर बढ़ता है, वह तरंग की चाल कहलाती है। तरंग की ऊर्जा तरंगाग्र के लंबवत चलती है।
यदि एक बिंदु-स्रोत प्रत्येक दिशा में एक समान तरंगें उत्सर्जित करता है तो उन बिंदुओं का बिंदुपथ, जिनका आयाम समान है और जो एक समान कला में कंपन करते हैं, गोला होता है तथा हमें भाँति एक गोलीय तरंग प्राप्त होती है।
अब यदि हमें t= 0 पर किसी तरंगाग्र की आकृति ज्ञात है तो हाइगेंस के सिद्धांत द्वारा हम किसी बाद के समय τ पर तरंगाग्र की आकृति ज्ञात कर सकते हैं। अत: हाइगेंस का सिद्धांत वास्तव में एक ज्यामितीय रचना है जो किसी समय यदि तरंगाग्र की आकृति दी हुई हो तो किसी बाद के समय पर हम तरंगाग्र की आकृति ज्ञात कर सकते हैं।
यदि, एक अपसरित तरंग F1F2,t= 0 समय पर एक गोलीय तरंगाग्र के एक भाग को प्रदर्शित करता है । अब हाइगेंस के सिद्धांत के अनुसार, तरंगाग्र का प्रत्येक बिंदु एक द्वितीयक विक्षोभ का स्रोत है और इन बिंदुओं से होने वाली तंत्रिकाएं तरंग की गति से सभी दिशाओं में फैलती हैं। तरंगाग्र से निर्गमन होने वाली इन तरंगिकाओं को प्रायः द्वितीयक तरंगिकाओं के नाम से जाना जाता है और यदि हम इन सभी गोलों पर एक उभयनिष्ठ स्पर्शक पृष्ठ खींचें तो हमें किसी बाद के समय पर तरंगाग्र की नई स्थिति प्राप्त हो जाती है।
अत: यदि हम t= τ समय पर तरंगाग्र की आकृति ज्ञात करना चाहते हैं तो हम गोलीय तरंगाय के प्रत्येक बिंदु से vτ त्रिज्या के गोले खींचेंगे, जहाँ पर माध्यम में तरंग की चाल को निरूपित करता है। यदि हम इन सभी गोलों पर एक उभयनिष्ठ स्पर्श रेखा खींचें, तो हमें t=τ समय पर तरंगाग्र की नयी स्थिति प्राप्त होगी। चित्र में G1G2 द्वारा प्रदर्शित नया तरंगाग्र पुनः गोलीय है जिसका केंद्र 0 है।
उपरोक्त मॉडल में एक दोष है। हमें एक पश्च तरंग भी प्राप्त होती है जिसे चित्र में D1D2 द्वारा दर्शाया गया है। हाइगेंस ने तर्क प्रस्तुत किया कि आगे की दिशा में द्वितीयक तरंगिकाओं का आयाम अधिकतम होता है तथा पीछे की दिशा में यह शून्य होता है।
इस तदर्थ कल्पना से हाइगेंस पश्च तरंगों की अनुपस्थिति को समझा पाए। तथापि यह तदर्थ कल्पना संतोषजनक नहीं है तथा पश्चतरंगों की अनुपस्थिति का औचित्य वास्तव में एक अधिक परिशुद्ध तरंग सिद्धांत द्वारा बताया जा सकता है।
इसी विधि द्वारा हम हाइगेंस के सिद्धांत का उपयोग किसी माध्यम में संचरित होने वाली समतल तरंग के तरंगाग्र की आकृति ज्ञात करने के लिए कर सकते हैं ।
हाइगेंस सिद्धांत(Huygens's theory)का उपयोग करते हुए समतल तरंगों का अपवर्तन----
माना PP' माध्यम 1 तथा 2 को पृथक करने वाला पृष्ठ है तथा V1 एवं V2 तरंगाग्रो तथा BC की दूरी तय करने में लगा समय t हो तो,
BC=V1t
AE=V2t
∆ABC एवं ∆AEC
Sin i=BC/AC
Sin r=AE/AC
Sin i=V1t/AC_______(1)
Sin r=V2t/AC_______(2)
यहां i और r क्रमशः आपतन तथा अपवर्तन कोण है
Sin i/Sin r=V1t/V2t
Sin i/Sin r=V1/V2
यदि r < i (अर्थात, यदि किरण अभिलंब की ओर मुड़ती है), तो दूसरे माध्यम में प्रकाश तरंग की चाल (V2) पहले माध्यम में प्रकाश तरंग की चाल (V1) से कम होगी। तथा प्रकाश की चाल C हो तो,
n1=C/V1,
n2=C/V2
n1 तथा n2 माध्यम 1 तथा 2 के अपवर्तनंक हैं।
हम जानते हैं कि
n1 sin i= n2 sin r
sin i/sin r=n2/n1
यह स्नेल का अपवर्तन संबंधी नियम है। यदि λ1 तथा λ2 क्रमश: माध्यम 1 तथा माध्यम 2 में प्रकाश की तरंगदैर्घ्य को निरूपित करते हैं और यदि दूरी BC, λ1 के बराबर है तब दूरी AE, λ2 के बराबर होगी।
अतः
λ1/λ2=V1/V2
समतल तरंगों का परावर्तन----
अब हम एक परावर्तक पृष्ट MN पर किसी कोण i से आपतित एक समतल तरंग AB है
यदि v माध्यम में तरंग की चाल को निरूपित करता है तथा τ तरांगाग्र द्वारा बिंदु B से C तक आगे बढ़ने में लिए गए समय को निरूपित करता है. तब दूरी
BC= vτ
माना परावर्तित तरंगाग्र का निर्माण करने के लिए बिंदु A से त्रिज्या vτ है तथा CE इस गोले पर बिंदु C से खींची गई स्पर्शी समतल को निरूपित करती है।
इसलिए
AE = BC = vτ
त्रिभुज EAC तथा BAC से हम पाएंगे की ये दोनों आपस में सर्वांगसन हैं
कोण i तथा कोण r आपस में बराबर होंगे।
(यह परावर्तन का नियम है।)