Sunday, September 6, 2020

तारों का जन्म कैसे हुआ | constellation | how the stars were born in hindi

तारामंडल (Constellation)


पृथ्वी से देखने पर तारों का कोई समूह किसी विशेष आकृति का आभास देता प्रतीत होता है। हमारे पूर्वजों ने ऐसे कई तारा समूहों में कुछ आकृतियों की कल्पना की और उनको विशिष्ट नाम दिए। तारों के ऐसे समूह को तारामंडल कहते हैं।

इन तारामंडलों का नामकरण उनकी आकृति के आधार पर की गई है। जैसे की

  • वृहत् सप्तऋषि मंडल (Ursa major)
  • लघु सप्तऋषि मंडल (Ursa minor)
  • मृग (Orion)
  • सिग्नस (Cygnus)
  • हाइड्रा (Hydra)

आकाश में कुल 89 तारामंडल हैं। इनमे से सबसे बड़ा तारामंडल सेंटाॅरस जिसमें 94 तारों सा समूह है। जबकि हाइड्रा में लगभग 68 तारों का समूह है।
वृहत् सप्तऋषि नामक तारामंडल में बहुत से तारे है जिसमें सात ज्यादा चमत्कार तारे हैं जो आसानी से दिखाई देते हैं। इन तारों से बना तारामंडल सामान्यतः वृहत् सप्तऋषि कहलाता है।
लघु सप्तऋषि में भी अधिक चमक वाले 7 तारे है। उत्तरी गोलार्द्ध में वृहत् सप्तऋषि और लघु सप्तऋषि तारामंडलों को प्रायः बसंत ऋतु में देखा जा सकता है।

मृग तारामंडल को शीत ऋतु में देखा जा सकता है। मृग भव्य तारामंडलों में से एक है। इसमें सात चमकीले तारे हैं जिनमे से चार किसी चतुर्भुज की आकृति बनाते प्रतीत होते हैं। इस चतुर्भुज के एक कोने पर सबसे विशाल तारों में एक बिटलगीज नाम का तारा स्थित है जबकि दूसरे विपरीत कोने पर रिगेल नामक अन्य चमकदार तारा स्थित है। मृग के अन्य तीन प्रमुख तारे तारामंडल में मध्य में एक सरल रेखा में अवस्थित है।

तारे-----


तारे एक खगोलीय पिंड हैं जो लगातार प्रकाश एवं ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं। अतः सूर्य भी एक तारा है। भर के अनुपात में तारों में 70% हाइड्रोजन, 28% हीलियम, 1.5% कार्बन, नाइट्रोजन एवं निआॅन, तथा 0.5% में आयरन तथा अन्य भारी तत्व होते हैं।
तारे तीन रंग के होते हैैं
  • लाल
  • सफेद
  • नीला

तारे का रंग पृष्ठ तथा ताप द्वारा निर्धारित होता है। जिन तारों का पृष्ठ ताप निम्न होता है वे लाल रंग के होते हैं। जिनका पृष्ठ ताप उच्च होता है वे सफेद होते हैं तथा जिनका पृष्ठ ताप अत्यधिक उच्च होता है वे नीले रंग के होते हैं।

प्रॉक्सिमा सैनिटरी---


यह सूर्य के बाद पृथ्वी के सबसे निकट का तारा है। पृथ्वी से इसकी दूरी 4.22 प्रकाश वर्ष है। एल्फा सैन्टाॅरी पृथ्वी से 4.3 प्रकाश वर्ष दूर है।
सभी तारे (ध्रुवतारा को छोड़कर) रात्रि आकाश में पूर्व से पश्चिम की ओर चलते प्रतीत होते हैं, क्योंकि पृथ्वी स्वयं अपने धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है, तारे विपरीत दिशा में पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हुए प्रतीत होते हैं। अतः आकाश में तारों की आभासी गति पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूर्णन के कारण होती है। ध्रुव तारा उत्तरी ध्रुव के ठीक ऊपर प्रतीत होता है और समय के साथ अपनी स्थिति नहीं बदलता है क्योंकि यह पृथ्वी के घूर्णन की धुरी (अक्ष) पर स्थित होता है।
ध्रुव तारा अर्सा माइनर या लिटिल बियर तारा समूह का सदस्य है।


तारे का निर्माण का कच्चा माल मुख्यतः हाइड्रोजन एवं हीलियम गैस है। तारे का जीवन चक्र मंदाकिनियों में उपस्थित हाइड्रोजन और हीलियम गैसों के घने बादलों के रूप में एकत्रित होने के साथ आरंभ होता है।

आदि तारे का निर्माण --

तारे का जीवन चक्र आकाश गंगा में हाइड्रोजन तथा हीलियम के संघनन से प्रारंभ होता है जो अंततः घने बादलों का रूप धारण कर लेता है इन बादलों को ऊर्ट बादल कहा जाता है। इन बादलों का ताप -173°C होता है। जैसे _जैस इन बादलों का आकार बढ़ता जाता है, गैसों के अणुओं के बीच गुरुत्वाकर्षण बल बढ़ता जाता है। जब बादलों का आकार काफी बड़ा हो जाता है तब यह स्वयं के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सिकुड़ता चला जाता है। यह सिकुड़ता हुआ घना गैस पिंड आदि तारा कहलाता है। आदि तारा प्रकाश उत्सर्जित नहीं करता है।

आदि तारे से तारे का निर्माण ---

आदि तारा अत्यधिक सघन गैसीय द्रव्यमान है जो विशाल गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आगे भी संकुचित होता रहता है। ज्योंहि आदि तारा संकुचित होना आरंभ करता है, गैस के बादल में उपस्थित हाइड्रोजन परमाणु जल्दी_जल्दी टकराते हैं। हाइड्रोजन परमाणु के ये टक्कर आदि तारे के ताप को बढ़ा देते हैं। आदि तारे के संकुचन की प्रक्रिया लाखों वर्षों तक चलती रहती है जिसमें दौरान आदि तारे में आंतरिक ताप , आरंभ में मात्र -173°C से लगभग 10⁷ °C (10000000°C) तक बढ़ता है। 

इस अत्यधिक ताप पर हाइड्रोजन कि नाभिकीय संलयन अभिक्रियाएं होने लगती हैं। इस प्रक्रिया ने चार छोटे हाइड्रोजन नाभिक संलयित होकर बड़े हीलियम नाभिक बनाते हैं और ऊष्मा तथा प्रकाश के रूप में ऊर्जा की विशाल मात्रा उत्पन्न होती है। हाइड्रोजन के संलयन से हीलियम बनने के दौरान उत्पन्न ऊर्जा आदि तारे को चमक प्रदान करता है और वह तारा बन जाता है।